Sunday, August 15, 2010

क्या जिन्दगी इसी को कहते है दोस्त..............


जिन्दगी - मेरी डायरी के पन्नो से - मेरे शब्दों में .............
मुझे उम्मीद थी एक जवाब की
मुझे एक बेहूदा सा सवाल मिला है
क्या जिन्दगी इसी को कहते है दोस्त ,
जब दिल ने चाहा , जीना
तब ही मौत का पैगाम मिला है
मुझे तलाश थी एक हंसी दुश्मन की
मुझे हर कदम दोस्ती का नजराना मिला है
क्या हकीकत यही है प्यार की दोस्त ,
जब दिल ने चाहा, मिलन
तब ही जुदाई का फरमान मिला है
मुझे चाहत थी गुमशुदा होने की
मुझे हर दौर में चर्चा-ए-आम मिला है
क्या बंदगी इसी को कहते है दोस्त,
जब दिल ने चाहा, वीराना
तब ही रौनके-ए-महफ़िल का नाम मिला है l

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