तुम बिन ज़िन्दगी है सूनी।
बर्फ के चादर सी ठंडी,
खुशियां विहीन,
निष्पन्द, निश्क्रिय
जो गम के धूप से पिघलती
आंसू, गम, दर्द समेटे
सुख ,चैन, शांति गर्त में दबाये
बेजान सी पड़ी है।
काली घाटाओं की तरह,
मन की व्यथा,
नयनों के नीर
आकुल हैं
बरसने के लिये।
पल पल सालता है
चुभता है रीतापन।
ये सूनी रातें,
ये खाली दिन।
कठिन है, कठिन है
जीना तुम्हारे बिन।
क्षितिज जहा संभव सा लगता है मिलन धरती और आकाश का , क्षितिज जिसकी हर शह खुबसूरत सी है , मानो असंभव भी हो गया हो सम्भव तब , क्षितिज तुम्हारे आने की आस और , मेरे सपनो की दुनिया ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Sunday, May 22, 2011
तुम बिन...
Wednesday, May 4, 2011
बरसों के बाद देखा..
बरसों के बाद देखा इक शख्स दिलरुबा सा
अभी जहन में नहीं है पर नाम था भला सा
अबरू खिंचे खिंचे से आखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहज़ा थका थका सा
अलफाज़ थे के जुगनु आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा
ख़्वाबों में ख़्वाब उसके यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आये कितने ही ज़िंदगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा
अगली मुहब्बत्तों ने वो नामुरादियाँ दीं
ताज़ा रफाक़तों से दिल था डरा डरा सा
कुछ ये के मुद्द्तों से हम भी नहीं थे रोये
कुछ ज़हर में बुझा था अहबाब का दिलासा
फिर यूं हुआ के सावन आंखो में आ बसे थे
फिर यूं हुआ के जैसे दिल भी था आबला सा
अब सच कहें तो यारों हम को खबर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत इक वाक़या ज़रा सा
तेवर थे बेरूखी के अंदाज़ दोस्ती के
वो अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
हम दश्त थे के दरिया, हम ज़हर थे के अमृत
नाहक था ज़ोनुम हम को जब वो नहीं था प्यासा
हम ने भी उसको देखा कल शाम इत्तेफाक़न
अपना भी हाल है अब लोगों 'फराज़' का सा
Sunday, March 6, 2011
दूर तक छाये थे बादल..
दूर तक छाये थे बादल,
पर कहीं साया न था|
इस तरह बरसात का मौसम
कभी आया न था |
क्या मिला आख़िर ,
तुझे सायों के पीछे भाग कर |
ऐ दिले-नादाँ,
तुझे क्या हमने समझाया न था |
उफ़ ये सन्नाटा की आहट तक न हो,
जिसमें मुखिल,
ज़िन्दगी में इस कदर,
जमने सुकूँ पाया न था |
खूब रोये छुपके घर की चारदीवारी में हम,
हाले-दिल कहने के क़ाबिल कोई हमसाया न था |
हो गए कल्लाश जबसे आस की दौलत लुटी,
पास अपने और तो कोई भी सरमाया न था|
सिर्फ़ खुशबू की कमी थी गौर के क़ाबिल 'क़तील',
वरना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था |
Wednesday, February 23, 2011
अनकहीं बात..
हम कि ठहरे अजनबी ,
इतनी मतारतों के बाद ,
फिर बनेगे आशना ,
कितनी मुलाकातों के बाद |
थे बहुत बेदर्द लम्हे,
खत्में दर्दे इश्क के ,
थी बहुत बे -महर सुब्हें ,
महरबां रातों के बाद |
दिल तो चाहा पर,
शिकस्ते दिल ने मोहलत ही न दी ,
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते ,
मुनाजातों के बाद |
उनसे जो कहने गये थे ,
फैज जा सदका किये ,
अनकहीं ही रह गई वो बात ,
सब बातो के बाद |
Sunday, February 13, 2011
यह वही दिन है ..
यह वही दिन है ....
जो किसी सूर्योदय से, संभव नहीं हुआ |
जो किसी निशांत के बाद ,
आया अपने क्रम से |
यह वही दिन है ...
जो पंखो में थरथराती गर्माहट से उठा ,
और एक चिड़िया के गान से ,
जिसका जन्म हुआ|
यह वही दिन है ....
जो पंचाग में आया प्रेम कि तिथि पर ,
शब्दों के आकाश में जिसकी सिंदूरी आभा ,
छायी रही देर तक |
जिसके लिए रात सिर्फ अँधेरी चादर थी ,
कुछ देर ओढ़कर निस्पंद रहने के लिए |
यह वही दिन है ....
जब उसने कुछ कहा ,जब उसने कुछ सुना,
और सब कुछ खिल गया |
खुला -खुला सा , समय के वृत पर |
यह वही दिन है ....
जो अपने अन्त पर आरम्भ है |
Saturday, February 12, 2011
'तन्हा'..
हंसी थमी है इन आँखों में नमी कि तरह ,
महकती थी गुलशन में जो कली कि तरह |
यूँ तो कोई आता नहीं , इस वीरान चमन में ,
ये किसकी परछाई है , कुछ मेरी ही तरह |
यूँ तो दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा है ,
पर यादें भी कड़वा सच हे ,जिन्दगी कि तरह |
वो आया और चला गया सब कुछ लेकर ,
लिपटी रह गई रूह बदन पर अजनबी कि तरह|
किसे ढूंढती है इस दुनिया -ए -दश्त में 'तन्हा',
कोई साथी हो तेरा भी , खामोशी कि तरह |
Thursday, February 10, 2011
जो चल सको तो चलो..
सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंजिलें हैं जो चल सको तो चलो
बने बनाये हैं सांचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराकर अगर तुम संभल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख्वाब चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
हर एक सफर को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफज़तों की रवायत बदल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज धुआं धुआं है फिजा
ख़ुद अपने आप से बहार निकल सको तो चलो..
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंजिलें हैं जो चल सको तो चलो
बने बनाये हैं सांचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराकर अगर तुम संभल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख्वाब चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
हर एक सफर को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफज़तों की रवायत बदल सको तो चलो
कहीं नहीं कोई सूरज धुआं धुआं है फिजा
ख़ुद अपने आप से बहार निकल सको तो चलो..
Saturday, February 5, 2011
विश्वास बहुत है..
जाने क्यूँ ,तुमसे मिलने कि आशा कम, विश्वास बहुत है|
सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है ,
विरह ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती हें ,
मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है |
जाने क्यूँ ,तुमसे मिलने कि आशा कम, विश्वास बहुत है|
धन्य धन्य मेरी लघुता को , जिसने तुम्हें महान बनाया ,
धन्य तुम्हारी स्नेह कृपणता ,जिसने मुझे उदार बनाया,
मेरी अंध भक्ति को केवल इतना मंद प्रकाश बहुत है |
जाने क्यूँ ,तुमसे मिलने कि आशा कम, विश्वास बहुत है |
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