Wednesday, October 27, 2010

जिन्दगी.


जिन्दगी ऐसे हर लम्हा ढलती रही,
रेट मुट्ठी से जैसे फिसलती रही |
दिन थका मांदा एक और सोता रहा ,
रात बिस्तर पर करवट बदलती रही |
कह ना पाया जुबां से वो कुछ आज भी ,
आँख में दिल की दुनिया मचलती रही|
जहाँ की पटरियों पर तेरी याद की ,
रेल हर शाम रुक रुक कर चलती रही |
आग में तप के सोना निखरता रहा ,
जिन्दगी ठोकरों मै संभलती रही |
शहर में नफरतों की हवा थी मगर ,
प्यार की शम्मा बेखोफ जलती रही |
किस तरह हो भरोसा आप पर ,
हर कदम दोस्ती मुझको छलती रही |

Thursday, October 21, 2010

दुविधा ..




ये क्या दस्तूर है,ये कैसे नजराने मिले है|
जब भी मोड़ आया , नए हमराही मिले है |
या खुदा ये तेरी खुदाई है कैसा खेल ,
शिकस्त के आसार थे जहाँ
वहां फतह के नजराने मिले है |
मै तो हैरान थी की प्यार का दस्तूर ना निभाया ,
तुने ऐसे करिश्मे दिखाएँ की ,
जो मिले प्यार के दीवाने मिले है |
अभी फलक पर मेरी जीत बाकी है,
अभी नूर की सूरत देखनी बाकी है |
पर तू कहां कम है ?
जब जब लगा अब मंजिल करीब है ,
तब -तब मुझे ,
रुकने के बहाने मिले है ||

Wednesday, October 6, 2010

काटों सी चुभती है तन्हाई ..


काटों सी चुभती है तन्हाई
अंगारों सी सुलगती है तन्हाई

कोई आ कर हम दोनों को हंसा दे

मैं रोता हूँ रोने लगती है तन्हाई

जब भी तेरे हिसार से निकलना चाहा

यादों के बीज बोने लगती है तन्हाई

रात के किसी हिस्से में, यह भी बेवफा हो जाती है
मैं नहीं सोता सोने लगती है तन्हाई
तुम से जुदा हो कर इस से ही दिल लगा लिया है
मर सा जाता हूँ जब खोने लगती है तन्हाई

Sunday, October 3, 2010

आज फिर..


तन्हा तन्हा, खोई खोई,मै और मेरी परछाई..
आज फिर दस्तूर निभाया सबने ,
आज फिर यादें घिर आयी
आज फिर बादें-सबां हुआ रोशन ,
आज फिर बहार चली आई
तन्हा तन्हा, खोई खोई ,मै और मेरी परछाई
आज फिर धड़कन बनी चंचल , आज फिर लफ्जों में गहराई
आज फिर मुस्कुराहट बनी बोझल आज फिर हँसतें- हँसते आँख भर आई
तन्हा तन्हा, खोई खोई ,मै और मेरी परछाई
आज फिर कसम खामोशी की, आज फिर मंजिल दूर नजर आई
आज फिर नव आस मै मन ,आज फिर आहट किसी की आई
तन्हा तन्हा, खोई खोई ,मै और मेरी परछाई

Saturday, October 2, 2010

तुम नहीं आयें..


जमाना गया रुसवाइयों तक , तुम नहीं आयें
जवानी गयी तनहाइयों तक, तुम नहीं आयें
धरा पर थम गयी आंधीं, गगन में कांपती बिजली
घटायें गयीं अमराइयों तक ,तुम नहीं आयें
नदी के साथ निर्झर की मिली पाती समंदर को
सतह भी गयी , गहराइयों तक , तुम नहीं आये
समापन हो गया तम में सितारों की सभाओ का
उदासी गयी अंगड़ाइयों तक, तुम नहीं आये
शमां है , परवाने , ये क्या महफ़िल -
की मातम गया शहनाइयों तक , तुम नहीं आयें
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