Saturday, July 31, 2010

दोस्ती को परिभाषित करने की कोशिश ,,,,,,एक रचना मेरी डायरी से,,,,,,,,,


दोस्ती एक रिश्ता भी है हमराही के प्यार का ,
दोस्ती एक नाम भी है ,अजनबी के विश्वास का ,
दोस्ती एक सलीका भी है अंजानो से व्यव्हार का ,
दोस्ती एक रंग भी है सावन की बहार का
दोस्ती एक फूल भी है उस बाग के गुलाब का
दोस्ती एक धोखा भी है मिलन के खुमार का
दोस्ती एक टकरार भी है ,संगम पानी और आग का
दोस्ती एक आधार भी है , हर रिश्ते की शुरुआत का
हैं एक अनमोल बंधन इस संसार का ...................

Thursday, July 29, 2010

"दोस्त-भक्ति की कलम से


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कोई पास नहीं कोई साथ नहीं तो क्या
ज़िन्दगी ख़ुशी ही नहीं गम भी है
कोई हमसफ़र न मिले तो गम मत कर ऐ दोस्त
तेरे हमकदम हम भी है



ज़िन्दगी में किसी के न होने का शिकवा न करना
इस ज़िन्दगी में रिश्ते और भी है
अंधेरों का नाम न दे ज़िन्दगी को
हर रात क बाद भोर भी है

जानते है इक तरफ ये शिकायत-ए-ख़ामोशी
तो इक तरफ तन्हाई का शोर भी है
तेरी फिक्र है दोस्त इसीलिए कहते है
वरना हमारे दोस्त और भी है

ज़मीन से रह गया दूर आसमान कितना..

ज़मीन से रह गया दूर आसमान कितना
सितारा अपने सफ़र में है खुश गुमान कितना

परिंदा पैकाँ ब दोश परवाज़ कर रहा है
रहा है उसको ख़्याल ए सय्यादगान कितना

हवा का रुख देख कर समंदर से पूछना है
उठायें अब कश्तियों पे हम बादबान कितना

बहार में खुशबुओं का नाम ओ नसब था जिससे
वही शजर आज हो गया बेनिशान कितना

गिरे अगर आइना तो इक ख़ास ज़ाविये से
वर्ना हर अक्स को रहे खुद पे मान कितना

बिना किसी आस के उसी तरह जी रहा है
बिछड़ने वालों में था कोई सख्तजान कितना

वो लोग क्या चल सकेंगे जो उँगलियों पे सोचें
सफ़र में है धूप किस क़दर सायबान कितना


क्षितिज ,संगम धरा व् गगन का,
क्षितिज, जहाँ आदित्य भी है मौन ,
क्षितिज, जहाँ मुमकिन है समस्त ,
क्षितिज ,जहाँ परिपूर्ण है प्रत्येक,
क्षितिज,कल्पना अनंतता की ,
क्षितिज,बस एक क्षितिज,
जहाँ पहुचने की चाह मे है ,
हर कोई,हर समय ,हर संभव ,
क्षितिज बस क्षितिज ....शिवांगी

Sunday, July 25, 2010

क्षितिज


कौन कहता है की जमीं से आसमां नहीं मिलता
जब जमी से उठता है बादल तो क्या उसे हवा का साथ नहीं मिलता
जब बरसता है आसमां तो क्या उसे बहारो का दामन नहीं मिलता
बेशक मीलो है दरम्या , मगर गौर से देखो
तो क्या क्षितिज पर मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता