Sunday, August 1, 2010

अब कोई दोस्त नया क्या करना


अब कोई दोस्त नया क्या करना
भर गया ज़ख्म हरा क्या करना

उस से अब ज़िक्रे-वफ़ा क्या करना
हौसला हार गया क्या करना

वो भी दुश्मन तो नहीं है अपना
अपने ही हक में दुआ क्या करना

याद जो आये भुलाते रहना
अब हमें इस के सिवा क्या करना

शोर कितना था सुनाता किस को
और अब शोर बपा क्या करना

जिस को मुँह का भी कहा याद नहीं
उस के हाथों का लिखा क्या करना

जब तू ही मिल न सका मुझ को 'निज़ाम'
मिल गई खल्क़े ख़ुदा क्या करना

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