ये क्या दस्तूर है,ये कैसे नजराने मिले है|
जब भी मोड़ आया , नए हमराही मिले है |
या खुदा ये तेरी खुदाई है कैसा खेल ,
शिकस्त के आसार थे जहाँ
वहां फतह के नजराने मिले है |
मै तो हैरान थी की प्यार का दस्तूर ना निभाया ,
तुने ऐसे करिश्मे दिखाएँ की ,
जो मिले प्यार के दीवाने मिले है |
अभी फलक पर मेरी जीत बाकी है,
अभी नूर की सूरत देखनी बाकी है |
पर तू कहां कम है ?
जब जब लगा अब मंजिल करीब है ,
तब -तब मुझे ,
रुकने के बहाने मिले है ||
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDeleteजब जब लगा अब मंजिल करीब है ,
ReplyDeleteतब -तब मुझे ,
रुकने के बहाने मिले है |
behad khubsurat likha hain.. Shilpa ji Apne... behad pasand aayi...