Wednesday, October 6, 2010

काटों सी चुभती है तन्हाई ..


काटों सी चुभती है तन्हाई
अंगारों सी सुलगती है तन्हाई

कोई आ कर हम दोनों को हंसा दे

मैं रोता हूँ रोने लगती है तन्हाई

जब भी तेरे हिसार से निकलना चाहा

यादों के बीज बोने लगती है तन्हाई

रात के किसी हिस्से में, यह भी बेवफा हो जाती है
मैं नहीं सोता सोने लगती है तन्हाई
तुम से जुदा हो कर इस से ही दिल लगा लिया है
मर सा जाता हूँ जब खोने लगती है तन्हाई

2 comments:

  1. तन्हाइयों को साथी बना लो
    फिर नही दगा देंगी तन्हाई।

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  2. कभी कभी तन्हाई ही साथी बन जाती हैं

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