जमाना आ गया रुसवाइयों तक , तुम नहीं आयें
जवानी आ गयी तनहाइयों तक, तुम नहीं आयें
धरा पर थम गयी आंधीं, गगन में कांपती बिजली
घटायें आ गयीं अमराइयों तक ,तुम नहीं आयें
नदी के साथ निर्झर की मिली पाती समंदर को
सतह भी आ गयी , गहराइयों तक , तुम नहीं आये
समापन हो गया तम में सितारों की सभाओ का
उदासी आ गयी अंगड़ाइयों तक, तुम नहीं आये
न शमां है , न परवाने , ये क्या महफ़िल -
की मातम आ गया शहनाइयों तक , तुम नहीं आयें
--
--
सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
ReplyDeleteशिल्पा जी,
ReplyDeleteधरा पर थम गयी आंधीं, गगन में कांपती बिजली
घटायें आ गयीं अमराइयों तक ,तुम नहीं आयें
सुन्दर प्रस्तुति .
- विजय
http://www.hindisahityasangam.blogspot.com/
इंतज़ार हद से गुज़र गयी
ReplyDeleteतुम नहीं आये ....सुन्दर प्रस्तुति