Saturday, October 2, 2010

तुम नहीं आयें..


जमाना गया रुसवाइयों तक , तुम नहीं आयें
जवानी गयी तनहाइयों तक, तुम नहीं आयें
धरा पर थम गयी आंधीं, गगन में कांपती बिजली
घटायें गयीं अमराइयों तक ,तुम नहीं आयें
नदी के साथ निर्झर की मिली पाती समंदर को
सतह भी गयी , गहराइयों तक , तुम नहीं आये
समापन हो गया तम में सितारों की सभाओ का
उदासी गयी अंगड़ाइयों तक, तुम नहीं आये
शमां है , परवाने , ये क्या महफ़िल -
की मातम गया शहनाइयों तक , तुम नहीं आयें
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3 comments:

  1. सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी

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  2. शिल्पा जी,
    धरा पर थम गयी आंधीं, गगन में कांपती बिजली
    घटायें आ गयीं अमराइयों तक ,तुम नहीं आयें
    सुन्दर प्रस्तुति .
    - विजय
    http://www.hindisahityasangam.blogspot.com/

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  3. इंतज़ार हद से गुज़र गयी
    तुम नहीं आये ....सुन्दर प्रस्तुति

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