सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है ,
विरह ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती हें ,
मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है |
जाने क्यूँ ,तुमसे मिलने कि आशा कम, विश्वास बहुत है|
धन्य धन्य मेरी लघुता को , जिसने तुम्हें महान बनाया ,
धन्य तुम्हारी स्नेह कृपणता ,जिसने मुझे उदार बनाया,
मेरी अंध भक्ति को केवल इतना मंद प्रकाश बहुत है |
जाने क्यूँ ,तुमसे मिलने कि आशा कम, विश्वास बहुत है |
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