Friday, November 12, 2010

प्रतीक्षा...


मैंने नहीं किया तुमसे कभी
किसी बात पर गिला शिकवा
ना कभी खाई कोई कसम
और ना ही बाध्य किया तुम्हे !
मैंने मचलकर , कभी नहीं कि ,
किसी जिद्दी बच्चे सी कोई ख्वाहिश ,
ना ही कभी जताया ,
तुम पर अपना अधिकार ,
मैंने कभी नहीं कहा तुमसे ,
कि बहुत दुखता है मुझे ,
तुम्हारा दिया हुआ कोई भी जख्म,
ना कभी कि कोशिश ,
कि बांध लू तुम्हारे बहाव को !
मैंने कभी नहीं बाँधा तुम्हे ,
संबोधन कि डोर से ,
ना ही अपने रिश्ते को ,
दिया कोई नाम |
मै बस खडी रही सदियों से मौन |
यो ही प्रतीक्षारत ,
अपने विश्वास कि बाँहे फैलाये |
तुम्हारी रहगुजर पर
कि किसी दिन तो आओगे तुम ,
और आकर ,उड़ेल दोगे मेरी झोली में ,
सारे जहाँ कि खुशियाँ |

12 comments:

  1. मै बस खडी रही सदियों से मौन |
    यो ही प्रतीक्षारत ,
    अपने विश्वास कि बाँहे फैलाये |
    सुन्दर अभिव्यक्ति और एहसास ...

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  2. दिल छु लेने वाली रचना ...

    .....अपनी तो आदत है मुस्कुराने की !
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  3. अवश्य ही आएँगी खुशियाँ आपके द्वार ,
    बस बनाये रखना विशवास और प्यार,
    प्रतीक्षा का फल हमेशा मीठा होता है,
    यही कहा इश्वर ने, और यही कहता है संसार |

    बहुत सुंदर रचना ......
    sparkindians.blogspot.com

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  4. बहुत शिद्दत से की प्रतीक्षा .... सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  6. bahvuk kar diya panktiyo ne ..sundr rachna ..kisi kamjor pal ko byaan karti hui :)

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  7. आह! बस इससे आगे कहने को कुछ बचा ही नही।

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  8. Prem ki gahri anubhooti liye ... gazab ki rachna hai ...

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  9. bhaav acche lage.. Shabd sanyojan kamjor hai, par bhaav bahut nischal hain. Keep writing

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  10. Purn Samarpan aur shiddat se intezaar ..... kitanii sundar abhivyakti .... Bahut khoob

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