Sunday, March 6, 2011

दूर तक छाये थे बादल..

दूर तक छाये थे बादल,

पर कहीं साया न था|

इस तरह बरसात का मौसम

कभी आया न था |

क्या मिला आख़िर ,

तुझे सायों के पीछे भाग कर |

ऐ दिले-नादाँ,

तुझे क्या हमने समझाया न था |

उफ़ ये सन्नाटा की आहट तक न हो,

जिसमें मुखिल,

ज़िन्दगी में इस कदर,

जमने सुकूँ पाया न था |

खूब रोये छुपके घर की चारदीवारी में हम,

हाले-दिल कहने के क़ाबिल कोई हमसाया न था |

हो गए कल्लाश जबसे आस की दौलत लुटी,

पास अपने और तो कोई भी सरमाया न था|

सिर्फ़ खुशबू की कमी थी गौर के क़ाबिल 'क़तील',

वरना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था |


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