दूर तक छाये थे बादल,
पर कहीं साया न था|
इस तरह बरसात का मौसम
कभी आया न था |
क्या मिला आख़िर ,
तुझे सायों के पीछे भाग कर |
ऐ दिले-नादाँ,
तुझे क्या हमने समझाया न था |
उफ़ ये सन्नाटा की आहट तक न हो,
जिसमें मुखिल,
ज़िन्दगी में इस कदर,
जमने सुकूँ पाया न था |
खूब रोये छुपके घर की चारदीवारी में हम,
हाले-दिल कहने के क़ाबिल कोई हमसाया न था |
हो गए कल्लाश जबसे आस की दौलत लुटी,
पास अपने और तो कोई भी सरमाया न था|
सिर्फ़ खुशबू की कमी थी गौर के क़ाबिल 'क़तील',
वरना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था |