
किसी बात पर गिला शिकवा
ना कभी खाई कोई कसम
और ना ही बाध्य किया तुम्हे !
मैंने मचलकर , कभी नहीं कि ,
किसी जिद्दी बच्चे सी कोई ख्वाहिश ,
ना ही कभी जताया ,
तुम पर अपना अधिकार ,
मैंने कभी नहीं कहा तुमसे ,
कि बहुत दुखता है मुझे ,
तुम्हारा दिया हुआ कोई भी जख्म,
ना कभी कि कोशिश ,
कि बांध लू तुम्हारे बहाव को !
मैंने कभी नहीं बाँधा तुम्हे ,
संबोधन कि डोर से ,
ना ही अपने रिश्ते को ,
दिया कोई नाम |
मै बस खडी रही सदियों से मौन |
यो ही प्रतीक्षारत ,
अपने विश्वास कि बाँहे फैलाये |
तुम्हारी रहगुजर पर
कि किसी दिन तो आओगे तुम ,
और आकर ,उड़ेल दोगे मेरी झोली में ,
सारे जहाँ कि खुशियाँ |