
जिन्दगी ऐसे हर लम्हा ढलती रही,
रेट मुट्ठी से जैसे फिसलती रही |
दिन थका मांदा एक और सोता रहा ,
रात बिस्तर पर करवट बदलती रही |
कह ना पाया जुबां से वो कुछ आज भी ,
आँख में दिल की दुनिया मचलती रही|
जहाँ की पटरियों पर तेरी याद की ,
रेल हर शाम रुक रुक कर चलती रही |
आग में तप के सोना निखरता रहा ,
जिन्दगी ठोकरों मै संभलती रही |
शहर में नफरतों की हवा थी मगर ,
प्यार की शम्मा बेखोफ जलती रही |
किस तरह हो भरोसा आप पर ,
हर कदम दोस्ती मुझको छलती रही |