
क्षितिज जहा संभव सा लगता है मिलन धरती और आकाश का , क्षितिज जिसकी हर शह खुबसूरत सी है , मानो असंभव भी हो गया हो सम्भव तब , क्षितिज तुम्हारे आने की आस और , मेरे सपनो की दुनिया ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Friday, December 31, 2010
पुकार..

Friday, November 12, 2010
प्रतीक्षा...

Thursday, November 4, 2010
ओ अज्ञात..

कब तक छिपे रहोगे ओ अज्ञात |
Wednesday, October 27, 2010
जिन्दगी.

जिन्दगी ऐसे हर लम्हा ढलती रही,
Thursday, October 21, 2010
दुविधा ..
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Wednesday, October 6, 2010
काटों सी चुभती है तन्हाई ..

काटों सी चुभती है तन्हाई
अंगारों सी सुलगती है तन्हाई
कोई आ कर हम दोनों को हंसा दे
मैं रोता हूँ रोने लगती है तन्हाई
जब भी तेरे हिसार से निकलना चाहा
यादों के बीज बोने लगती है तन्हाई
रात के किसी हिस्से में, यह भी बेवफा हो जाती है
मैं नहीं सोता सोने लगती है तन्हाई
तुम से जुदा हो कर इस से ही दिल लगा लिया है
मर सा जाता हूँ जब खोने लगती है तन्हाई
Sunday, October 3, 2010
आज फिर..

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Saturday, October 2, 2010
तुम नहीं आयें..

जमाना आ गया रुसवाइयों तक , तुम नहीं आयें
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Monday, September 20, 2010
प्यार का पहला ख़त .....................

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।
गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।
हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।
Wednesday, September 1, 2010
मन से मन का मेल यही है........

राधा ने जब कृष्ण को देखा ,आँखो में सौ दीप जले
होंठो पर ठहरी बातो को, नयनो की भाषा मिले
राधा ने जब कृष्ण को देखा दिल में प्रीत के कमल खिले
तेरे मेरे प्यार का गीत बस वैसे प्रीत की डगर चले
राधा ने जब कृष्ण को देखा संगीत प्यार का दिल में पाले
आज अपने मधुर मिलन में उसी राग का दौर चलेप्यास जो देखी थी उस दिन तेरे मीठे लबो पर
वही मीठी मीठी प्यास अब मेरे दिल में भी पाले
राधा ने जब कृष्णा को देखा मन में सौ दीप जले!!
Monday, August 30, 2010
वो ज़रा भी नहीं बदला, लोगों

बाद मुद्दत उसे देखा, लोगों
वो ज़रा भी नहीं बदला,लोगों
खुश न था मुझसे बिछड़ कर वो भी
उसके चेहरे पे लिखा था लोगों
उसकी आँखें भी कहे देती थीं
रात भर वो भी न सोया, लोगो
अजनबी बन के जो गुजरा है अभी
था किसी वक़्त में अपना, लोगों
दोस्त तो खैर, कोई किस का है
उसने दुश्मन भी न समझा, लोगों
रात वो दर्द मेरे दिल में उठा
सुबह तक चैन न आया, लोगों
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें........

ज़िंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें !
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें !!
सुर्ख फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें !
दिन ढले यूं तेरी आवाज़ बुलाती है हमें !!
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से !
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें !!
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यों है !
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें !!
Sunday, August 15, 2010
क्या जिन्दगी इसी को कहते है दोस्त..............

मुझे उम्मीद थी एक जवाब की
मुझे एक बेहूदा सा सवाल मिला है
क्या जिन्दगी इसी को कहते है दोस्त ,
जब दिल ने चाहा , जीना
तब ही मौत का पैगाम मिला है
मुझे तलाश थी एक हंसी दुश्मन की
मुझे हर कदम दोस्ती का नजराना मिला है
क्या हकीकत यही है प्यार की दोस्त ,
जब दिल ने चाहा, मिलन
तब ही जुदाई का फरमान मिला है
मुझे चाहत थी गुमशुदा होने की
मुझे हर दौर में चर्चा-ए-आम मिला है
क्या बंदगी इसी को कहते है दोस्त,
जब दिल ने चाहा, वीराना
तब ही रौनके-ए-महफ़िल का नाम मिला है l
Thursday, August 12, 2010
कहाँ है चांदनी ?

उसे देखो
खिडकियों से भीतर ,
परदों के पार,
मखमली घास पर
कहां नहीं है उसकी गमक
कहाँ नहीं है उसकी ठंडक
खलिहान के निकट
चौपाल के गट्टे पर
सड़क के किनारे
रेट के कणों मे
पर्वत के पेड़ पर
कहाँ नहीं है उसकी गमक
कहां नहीं है उसकी महक
तुम ?
क्या है तुम्हारें पास ?
केवल विराट शून्य भरा एक
आकाश ?
तुम वहीं रह गए चाँद
देखो , कहाँ - कहाँ पहुँच गई
तुम्हारी चांदनी
Monday, August 9, 2010
चाँदनी

इक लड़की पागल दीवानी,
गुमसुम चुप-चुपसी रहती थी
बारिश सा शोर न थाउसमें,
सागर की तरह वोबहती थी
कोई उस को पढ़ न पाया,
न कोई उसको समझा तब
छोटी उदास आँखें उसकी,
न जाने क्या-क्याकहती थी
शख़्स जो अक़्सर दिखता था, उस दिल के झरोखे में
दर्द कई वो देता था, रखता था उसको धोखे में
जितने पल रुकता था आकर, वो उसमें सिमटी रहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
इक दिन ऐसा भी आया, वो आया पर दर नहीं खुला
दरवाज़े पर हँसता था जो, इक चेहरा उस को नहीं मिला
आँसू के हर्फ़ वहाँ थे, और था वफ़ाका किस्सा भी
तब जान गये आख़िर, सब कैसे वोटूटी, कहाँ मिटी
समझा तब लोगों ने उसको, कैसे वो ताने सहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
बाद उसके ख़त भी मिले, जिनमें कई प्यार की बातें थी
सौगातें थी पाक दुआ की, भेजी चाँदनी रातें थी
लिखा था उसने, सम्हल के रहना, इतना भी मत गुस्सा करना
अब और कोई न सीखेगा, तुम से जीना, तुम पर मरना
अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी
हर गुस्से को हर चुप को, आसानी से जो पढ़ती थी
समझा वो भी अब जाकर, क्या उसकी आँखें कहती थी
था प्यार बला का उससे ही, वो जिसके ताने सहती थी
इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी
Friday, August 6, 2010
क्या क्या न ख़्वाब हिज्र के मौसम में खो गए

क्या क्या न ख़्वाब हिज्र के मौसम में खो गए
हम जागते रहे थे मगर बख्त सो गए
आँचल में फूल ले के कहाँ जा रही हूँ मैं
जो आने वाले लोग थे वो लोग तो गए
क्या जानिये उफ़क के उधर क्या तिलिस्म है
लौटे नहीं ज़मीन पे इक बार जो गए
आँखों में धीरे धीरे उतर के पुराने गम
पलकों पे नन्हें नन्हें सितारे पिरो गए
वो बचपने की नींद तो अब ख़्वाब हो गई
क्या उम्र थी कि रात हुई और सो गए
Wednesday, August 4, 2010
अब कौन से मौसम से कोई आस लगाए

अब कौन से मौसम से कोई आस लगाए
बरसात में भी याद जब न उनको हम आए
मिटटी की महक साँस की ख़ुश्बू में उतर कर
भीगे हुए सब्जे की तराई में बुलाए
दरिया की तरह मौज में आई हुई बरखा
ज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाए
बूँदों की छमाछम से बदन काँप रहा है
और मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाए
शाखें हैं तो वो रक़्स में, पत्ते हैं तो रम में
पानी का नशा है कि दरख्तों को चढ़ जाए
हर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरू
बारिश की हँसी ताल पे पाज़ेब जो छंकाए
अंगूर की बेलों पे उतर आए सितारे
रुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए