Friday, December 31, 2010

पुकार..

इस समय ..........
जो भी कहीं भी ,
किसी को भी पुकारता है ..
मेरी ओर से तुम्हें पुकारता हैं |
अपनी कविता के सुनसान में बैठा कवि,
फूलों कि चकाचोंध से दब गयी पत्तियां ,
आधी रात को रेगिस्तान में आया अंधड़ ,
बरसता बादल.......
मंदिर मे अकेला ईश्वर ....
सब .....मेरी और से तुम्हें पुकारते हैं |

1 comment:

  1. प्रकृति की सभी पुकार तुमने शब्दों में बाँध कर अपनी पुकार बना दी .. छोटी और सुन्दर रचना .. बहुत खूब

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