Monday, September 20, 2010

प्यार का पहला ख़त .....................


प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,

लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।

गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

हमने इलाज--ज़ख़्म--दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है

3 comments:

  1. भई वाह .... बहुत ही उम्दा , बहुत ही शानदार
    और बहुत ही बढ़िया .

    आभार .....

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  2. गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।
    यकीनन वक्त लगता है.
    सुन्दर रचना

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  3. गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
    लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

    बिलकुल सही कहा आपने ... हम चाहे लाख लोशिश कर लें.... लेकिन एक बार मन में जो गाँठ बन जाती है... फिर वो मुश्किल से ही जाती है... शायद यह नामुमकिन है... बहुत ही अच्छी लगी यह रचना...

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