Monday, August 30, 2010

वो ज़रा भी नहीं बदला, लोगों


बाद मुद्दत उसे देखा, लोगों
वो ज़रा भी नहीं बदला,लोगों

खुश न था मुझसे बिछड़ कर वो भी
उसके चेहरे पे लिखा था लोगों

उसकी आँखें भी कहे देती थीं
रात भर वो भी न सोया, लोगो

अजनबी बन के जो गुजरा है अभी
था किसी वक़्त में अपना, लोगों

दोस्त तो खैर, कोई किस का है
उसने दुश्मन भी न समझा, लोगों

रात वो दर्द मेरे दिल में उठा
सुबह तक चैन न आया, लोगों

4 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता धन्यवाद|

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  2. कम शब्द, नया अंदाज - बहुत अच्छा लगा पढ़कर

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें |

    ’लोगो’ को ’लोगों ’ करें तो अच्छा लगेगा ।

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  4. सराहना और सुझावों के लिये आप सभी का शुक्रिया.

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